तुझे सब है पता मेरी माँ.......

हाँ, माँ को सब पता होता है जो हम बताते हैं वो भी और जो नहीं बताते वो भी। जैसे भगवान से कुछ नहीं छुपता वैसे ही माँ से कुछ नहीं छुपता। मैंने और शायद आपने भी इस सच्चातई को कई बार महसूस कि‍या होगा। माँ से छुपना आसान है लेकि‍न उससे छुपाना बेहद मुश्कि‍ल है। जन्मस लेने के बाद खुद को जानने में हमारी जिंदगी नि‍कल जाती है लेकि‍न माँ तो हमें तब से जानती है जब हम अजन्मेम होते हैं।

हमारे सुख दुख की जि‍तनी साक्षी हमारी माँ होती है उतना शायद ही कोई ओर हो, भले ही फि‍र माँ सामने हो या ना हो। माँ सि‍र्फ एक रिश्ताम नहीं होता वो एक संस्काहर है, एक भावना है, एक संवेदना है। संस्काहर इसलि‍ए क्यों कि‍ वो आपके लि‍ए सि‍र्फ और सि‍र्फ अच्छाह सोचती है, भावना इसलि‍ए क्योंाकि‍ वो आपके साथ दि‍ल से जुड़ी होती है और संवेदना इसलि‍ए क्योंसकि‍ वो आपको हमेशा प्रेम ही देती है।

हम अपने जीवन की हर पहली चीज में अपनी माँ को ही पाते हैं। इस दुनि‍या से हमें जोड़ने वाली माँ ही होती है और माँ के साथ ही हमारे हर नए रि‍श्तेह की शुरुआत होती है। माँ के साथ जुड़ा हर रि‍श्ता हमारा हो जाता है। माँ हमें जन्मे के बाद से सि‍र्फ देती ही है कभी कुछ लेती नहीं है। उसके साथ हम सभी बहुत सहज महसूस करते है।

दूसरे रि‍श्तों को नि‍भाने में हमें सतर्कता बरतनी पड़ती है, सोचना पड़ता है, समझना पड़ता है लेकि‍न माँ के साथ नि‍बाह तो यूँ ही नि‍र्बाध बहते पानी की तरह हो जाता है क्योंोकि‍ हम जानते है कि‍ माँ को तो सब पता है उसके साथ कैसी असहजता। हम ये सब कुछ सोच-समझ के नहीं करते अपि‍तु ये सब स्वातभावि‍क रूप से हम कर जाते हैं शायद इसलि‍ए कि‍ हम माँ से गर्भत: जुड़े होते हैं।

इन सबके बीच माँ कभी हमें जानने का दावा नहीं करती। क्योंलकि‍ वो इसकी जरूरत नहीं समझती। वो जिंदगी भर सि‍र्फ हमारे लि‍ए जीती है। हम कि‍तनी ही बार उससे उलझ लेते हैं। लेकि‍न वो हमेशा हमें उलझनों से नि‍कालती रहती है। जरा सोच कर देखिए कि‍ हम हर उम्र में उसे अपनी तरह से तंग कि‍या करते हैं।

माँ को एक व्याक्ति‍ के रूप में नहीं समझा जा सकता। उसे समझने के लि‍ए समाज और संसार के व्यंवहारों से ऊपर उठना पड़ता है। माँ को समझने के लि‍ए भावना का धरातल चाहि‍ए। एक व्यकक्ति‍ के तौर पर हो सकता है कभी माँ से हमारे मतभेद हो जाए लेकि‍न माँ कभी गलत नहीं होती, बच्चाक उसके लि‍ए दुनि‍यादारी से अलग होता है।

संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लि‍ए उसका संसार होता है। अक्सर सच ही है, माँ कहने, सुनने, लि‍खने या सवाल-जवाब का विषय नहीं है केवल अनुभव करने का वि‍षय है।

Comments

  1. -: एक महत्वपूर्ण सूचना :-
    इस चिठ्ठा पर प्रकाशीत कुछ प्रविष्टियाँ, लेख एवं चित्र विभिन्न स्रोतों से लिए गए हैं तथा इनका सम्पूर्ण श्रेय पूर्ण-रूपेण इनके रचनाकार एवं धारक को जाता है

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